Breaking NewsMain Slidesभारत

जन्म तिथि का आधिकारिक प्रमाण ‘आधार कार्ड’ नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली,  उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि ‘आधार कार्ड’ जन्म तिथि का आधिकारिक प्रमाण नहीं है। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने सरोज और अन्य की पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील स्वीकार कर ली, जिसमें आधार कार्ड में दर्ज जन्म तिथि के आधार पर सड़क दुर्घटना में मृत्यु के लिए उन्हें दिए जाने वाले मुआवजे को कम कर दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र के आधार पर मृतक की आयु निर्धारित करने और मुआवजा तय करने के आदेश को बरकरार रखा।

पीठ ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा जारी एक परिपत्र का हवाला दिया। इसके साथ ही एक वैधानिक प्रावधान का भी जिक्र दिया, जिसमें स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र को जन्म तिथि का वैध प्रमाण घोषित किया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यूआईडीएआई ने 2023 में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 20 दिसंबर 2018 को जारी कार्यालय ज्ञापन के संदर्भ में कहा है कि आधार कार्ड का उपयोग पहचान स्थापित करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन यह जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है।

पीठ ने कहा कि शबाना बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (2024) मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने यूआईडीएआई की ओर से दिए गए एक बयान को दर्ज किया कि “आधार कार्ड को जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।”

पीठ ने यह भी बताया कि स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र को वैधानिक मान्यता दी गई है। इस संबंध में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 94 की उपधारा (2) का संदर्भ दिया गया।

वर्तमान अपील मामले में मृतक के आधार कार्ड पर उसकी जन्मतिथि 1 जनवरी 1969 दर्ज है। अपीलकर्ताओं ने स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र का हवाला दिया, जिसमें उसकी जन्मतिथि 7 अक्टूबर 1970 दर्ज है।

पीठ ने अन्य आधारों के साथ उनकी दलील को स्वीकार करते हुए मुआवजे की राशि 9,22,336 रुपये से बढ़ाकर 8 फीसदी की बढ़ी हुई ब्याज दर के साथ 15 लाख रुपये कर दी।

Related Articles

Back to top button