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कैराना की प्यासी धरती पर हर चुनाव में बदले मतदाताओं के सुर

सहारनपुर,शास्त्रीय संगीत ख्याल गायकी के संस्थापक अब्दुल करीम खां की प्यासी धरती कैराना लोकसभा क्षेत्र में 1962 से 2019 तक इक्का दुक्का चुनाव को छोड़ कर हर चुनाव में मतदाताओं ने नए उम्मीदवार को जीत की माला पहनाई है।

यहां हुए अब तक 16 चुनावों में 1989 और 1981 के दो लोकसभा चुनावों में जनता दल के हरपाल सिंह पंवार विजयी रहे थे लेकिन इसके अलावा कैराना की संगीत की धरती ने किसी उम्मीदवार को दोबारा प्रतिनिधित्व का मौका नहीं दिया।

कैराना सीट अस्तित्व मे आने के बाद 1962 के चुनाव में मालिक ठाकुर यशपाल सिंह ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत दर्ज की और पंड़ित नेहरू की लोकप्रियता के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार को पराजित किया था। इसके बाद कोई भी राजपूत यहां से विजयी नहीं हुआ है। लेकिन इस बार बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भाजपा से राजपूतों की नाराजगी को भुनाने और दलित राजपूत समीकरण के मद्देनजर सहारनपुर के राजपूत बहुल क्षेत्र के गांव भावसी के रिटायर्ड फौजी श्रीपाल राणा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।

राजनीति के जानकार प्रोफेसर डा. सुधीर कुमार पंवार इसको भाजपा की रणनीति का हिस्सा बताते हैं। सुधीर पंवार जो खुद किसानों की प्रगतिशील जाट बिरादरी से आते हैं, का कहना है कि भाजपा ने जाटों को विपक्षी खेमे में जाने से रोकने के लिए चौधरी अजीत सिंह के रालोद के साथ गठबंधन किया है। कैराना लोकसभा सीट पर एक लाख अस्सी हजार जाट मतदाता हैं। जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस सीट आधार वोट साढ़े पांच लाख मुस्लिम मतदाता हैं। इस सीट से पिछले चुनावों में जो 16 उम्मीदवार सांसद बने हैं उनमें सात बार मुस्लिम, छह बार जाट, दो बार हिंदू गुर्जर और एक बार राजपूत शामिल है।

कांग्रेस समर्थित सपा उम्मीदवार इकरा हसन जिसकी मजबूत राजनीतिक विरासत है। जिसके दादा अख्तर हसन कांग्रेस, पिता मनुव्वर हसन सपा, मां तबस्सुम बेगम बसपा एवं रालोद से सांसद रह चुकी हैं। उनका भाई नाहिद हसन कैराना से सपा विधायक है।

भाजपा उम्मीदवार गंगोह क्षेत्र के रहने वाले हिंदू गुर्जर प्रदीप चौधरी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। उनका कहना है कि वह रूठे कार्यकर्त्ताओं और मतदाताओं को मनाने में लगे हैं। कैराना संसदीय क्षेत्र के तहत अच्छी-खासी तादाद में राजपूत मतदाता आते हैं। कई कारणों से इस बिरादरी की नाराजगी को लेकर भाजपा के चुनावी रणनीतिकार चिंतित हैं। राजनीतिक जानकारों को भी यह समझ नहीं आ रहा है कि नामांकन की शुरूआत के मौके पर मायावती ने इस सीट पर राजपूत उम्मीदवार को किस कारण से उतारा है। क्या इसका लाभ भाजपा को मिलेगा या फिर इकरा हसन के पक्ष में जाएगा।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 50.44 फीसद वोट यानि 5 लाख 66 हजार 961 वोट मिले थे। सपा की तबस्सुम हसन को 42.24 फीसद यानि 4 लाख 47 हजार 801 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस उम्मीदवार हरेंद्र मलिक को 69 हजार 355 यानि 6.17 फीसद वोट मिले थे। हरेंद्र मलिक सपा के टिकट से मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से इस बार के उम्मीदवार हैं। जो जाट बिरादरी से आते हैं। इकरा हसन को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है। बसपा पिछली बार सपा के साथ गठबंधन में शामिल थी। अबकी वह अकेली चुनाव लड़ रही है यानि जातीय समीकरण अबकी पिछली से बार से थोड़े भिन्न हैं।

जयंत चौधरी पिछले हफ्ते कैराना क्षेत्र में घूमकर अपने समर्थकों से भाजपा के पक्ष में काम करने की अपील करके जा चुके हैं। 19 अप्रैल को पहले ही चरण में इस सीट पर मतदान होना हैं। कुल मतदाताओं की संख्या 17 लाख 19 हजार 11 है। 9 लाख 20 हजार 186 पुरूष मतदाता हैं और 7 लाख 98 हजार 825 महिला मतदाता हैं। इस सीट पर इकरा हसन अकेली महिला उम्मीदवार हैं। चार जून को होने वाली मतगणना से पता चलेगा कि संगीत घराने की धरती कैराना से सुर और ताल का कैसा तराना निकलेगा।

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